सारांश
असुका अवधि (538-710) के दौरान, तसुना को उसके सौतेले पिता ने एक स्थानीय अमीर आदमी को बेच दिया था। इस तरह के भाग्य से भागते हुए, तस्सुना मास्टर सुनार के साथ अज़ेरी की तलाश में पहाड़ पर गए, जो अपने दिवंगत पिता के साथ राजधानी में शिल्प का अभ्यास करते थे। जब तसुना थक कर गिर गई, तो उसे एक शख्स ने बचाया, जो अधूरा लग रहा था! -!